Saturday, December 31, 2011
Wednesday, December 28, 2011
2012 और बारह राशि
मेष : - इस राशि वालों के लिए शनि का विपरीत प्रभाव स्वास्थ्य व प्रतिष्ठा पर होगा। शनि की सप्तम दृष्टि लग्न पर पड़ने से व्यक्तित्व पर असर होगा। मेष राशि वाले सरसों का एक चम्मच तेल प्रति शनिवार को जमीन पर गिराएं। शनि दर्शन से बचें। पुखराज सव्वा पांच रत्ती का चांदी के लॉकेट में बनवा कर गुरुवार को प्रातः 7.15 पहनें।
वृषभ : - इस राशि वालों के लिए शनि का गोचरीय भ्रमण षष्ट भाव से होने के कारण द्वादश भाव पर नीच दृष्टि पड़ने से बाहरी संबंध में गड़बड़ी से बचने के लिए सुरमे की नौ शीशी या एक शीशी सरसों का तेल भरकर तालाब में डालें। गले में दस रत्ती का ओपल लॉकेट बनवा कर पहनें।
मिथुन : - शनि का गोचरीय भ्रमण पंचम से होकर आय भाव एकादश पर नीच दृष्टि डालने से आय में कमी का कारण बनता है। आपके लिए तिल का तेल एक चम्मच भरकर जमीन पर गिराएं। बड़े भाई की सेवा करें। पन्ना पहनें।
कर्क : - इस राशि वालों के लिए शनि का भ्रमण चतुर्थ भाव से होकर दशम व्यापार, नौकरी, राजनीति, पिता पर विपरीत असर डालने से बचने हेतु सरसों का तेल या तिल का तेल जमीन पर डालें। मोती के साथ पुखराज पहनें।
सिंह : - इस राशि वालों के लिए तृतीय भाव से शनि का भ्रमण रहेगा। नवम (भाग्य) भाव पर नीच दृष्टि पड़ने से भाग्य, धर्म में रूकावट डालेगा। इससे बचने हेतु सरसों का तेल जमीन पर डालें। मूंगा सव्वा दस रत्ती का अनामिका में चांदी की अंगूठी बनवा कर पहनें।
कन्या : - इस राशि वालों के लिए द्वितीय (वाणी) भाव से शनि का भ्रमण आयु भाव पर नीच दृष्टि डाल रहा है। जो व्यक्ति बीमार चल रहे है, वे सरसों का तेल स्वयं पर से उतार कर दान दें। जो जमीन पर डाल सके वह तिल का तेल एक चम्मच कच्ची जमीन पर गिराएं।
तुला : - इस राशि वालों के लिए शनि का गोचरीय भ्रमण लग्न से होकर सप्तम भाव पर नीच दृष्टि डाल रहा है। जीवनसाथी को नुकसान हो सकता है। शुभता के लिए जमीन पर तिल तेल एक चम्मच गिराएं व ओपल पहनें।
वृश्चिक : - इस राशि वालों के लिए द्वादश भाव पर शनि का भ्रमण है, जो षष्ट भाव पर नीच दृष्टि डालने से स्वास्थ्य पर विपरीत असर डालता है। कर्ज से परेशान रखता है। इससे राहत पाने हेतु जमीन में सरसों का तेल प्रति शनिवार को एक चम्मच भरकर डालें।
धनु : - इस राशि वालों के लिए शनि का भ्रमण एकादश (आय) भाव से होकर पंचम संतान, विद्या, प्रेम भाव पर नीच दृष्टि डाल रहा है, अत: इन मामलों पर विपरीत प्रभाव रहेगा। शनि की शुभता हेतु स्कूल में काली वस्तुओं का दान करें व स्कूल की जमीन पर सरसों का तेल डालें।
मकर : - इस राशि वालों के लिए दशम भाव से गोचर भ्रमण करके चतुर्थ (माता, भूमि : -भवन, प्रसिद्धि) भाव पर विपरीत प्रभाव डालेगा। इससे बचने हेतु गरीब बुजुर्ग औरत को कंबल दान करें। सरसों के तेल से भरी शीशी नदी में प्रवाहित करें।
कुंभ : - इस राशि वालों के लिए शनि का भ्रमण नवम भाव से हो रहा है। यह गोचर तृतीय (छोटे भाई, पराक्रम, साझेदारी, शत्रु) भाव को प्रभावित करेगा। इससे बचने हेतु छोटे भाई से मधुर व्यवहार रखें। शत्रु पक्ष से बचाव हेतु शनि मंत्र का जाप 108 बार प्रत्येक शनिवार वर्ष भर करें।
मीन : - इस राशि वालों के लिए शनि का गोचरीय भ्रमण अष्टम से हो रहा है। अत: द्वितीय भाव (धन, कुटुंब, वाणी व बचत) पर विपरीत प्रभाव डालेगा। इससे बचने हेतु वाणी पर सयंम रखें। सरसों का तेल जमीन पर गिराएं।
Sunday, December 25, 2011
भगवान (डाक्टरों) को मनाने के लिए यज्ञ
जायल के संतोषी माता मंदिर में रविवार के चिकित्सक हड़ताल के विरोध में सदबुद्धि यज्ञ करते एनएसयुआई कार्यकर्ता
चिकित्सक हड़ताल के चलते मरिजों को हो रही परेशानी के कारण रविवार को एनएसयुआई व युवा कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने संतोषी माता मंदिर में सदबुद्धि यज्ञ का आयोजन किया। एनएसयुआई जिलाध्यक्ष हनुमानराम बांगड़ा ने यज्ञ में आहूति देकर भगवान से धरती के भगवान चिकित्सकों को सद्बुद्धि देने की कामना की गई। उन्होंने कहा कि चिकित्सक को भगवान का रूप माना जाता है लेकिन चिकित्सक अपनी मांगों को लेकर हठधर्मिता अपनाकर मरिजों के साथ खिलवाड़ कर रहे है। बीमार व्यक्ति को बचाने वाला चिकित्सक भी जब मरिजों को मौत के मुंह में जाता हुआ देख रहे है तो इससे दु:खद घटना क्या होगी। एनएसयुआई ब्लॉक अध्यक्ष व युवा कांग्रेस शहर अध्यक्ष पवन बटेसर ने चिकित्सकों से अपनी हठधर्मिता छोडक़र मरिजों का उपचार करने का आग्रह किया। कार्यकर्ता पुरूषोतम रिणवां, मुकेश बटेसर सहित कई कार्यकर्ताओं ने विचार व्यक्त किए। पंडित मुकेश शर्मा ने वैदिक मंत्रोच्चार के साथ यज्ञ सम्पन्न करवाया।
अवकाश में स्पोटर्स का मजा
नि:शुल्क नेत्र शिविर
गौ माता की सेवार्थ उठाया बीड़ा
धर्मपाल मेहला का अभिनंदन
नागौर सैण्ट्रल कॉ ओपरेटिव बैंक शाखा में शनिवार को सहकारी विभाग के धर्मपाल मेहला का आरएएस में चयन होने पर नागरिक अभिन्नदन किया गया। सहकारी विभाग के अंकेक्षक मेहला का आरएएस में चयन होने पर बैंक ऑफिसर युनियन के अध्यक्ष श्रीराम गोदारा, शाखा प्रबन्धक पुरूषोतम गुप्ता, व्यवस्थापक यूनियन के जिलाध्यक्ष मेहराम, व्यवस्थापक फताराम पोटलिया, शिवराम चोटिया, रामाकिशन, घासीराम बिडियासर, केशाराम बिडियासर, रामनिवास, भंवरनाथ सहित कार्मिकों ने माल्यार्पण व साफा पहनाकर स्वागत सत्कार किया।
जनप्रतिनिधियों का स्वागत समारोह
Monday, December 19, 2011
रावणा राजपूत समाज का सम्मेलन संपन्न
जायल के कांकाणी भवन में रावणा राजपूत समाज के जिला सम्मेलन में उपस्थित प्रतिनिधि
रावणा राजपूत समाज का जिला सम्मेलन रविवार कांकाणी भवन में आयोजित किया गया। सम्मेलन को संबोधित करते हुए मुख्य अतिथि केकड़ी पूर्व प्रधान रिकूकंवर राठौड़ ने कहा कि शिक्षा, सामाजिक एकता, संगठनशक्ति व जागरूकता से ही कोई समाज तरक्की कर पाता है। उन्होंने कहा कि समाज आर्थिक व बहुमत के आधार पर सम्पन्न है लेकिन पहचान व जागरूकता के अभाव में समाज को अपना हक नहीं मिल पाया है। उन्होंने कहा कि हमें अपनी पहचान उजागर कर सामाजिक एकता का संदेश देकर समाज विकास को बढ़ावा देना होगा। सम्मेलन के अध्यक्ष अखिल भारतीय रावणा राजपूत सभा के संरक्षक हरिसिंह सोलंकी ने कहा कि हमारा गौरवशाली इतिहास रहा है लेकिन हम अपने इतिहास के गौरव को भूलकर खामोशी में जीवन जी रहे है। उन्होंने समाजबन्धुओं से अपनी ताकत को पहचानकर शैक्षणिक, आर्थिक व राजनैतिक गौरव प्राप्त करने का आग्रह किया। जिलाध्यक्ष किशनसिंह सोलंकी, मारवाड़ रावणा राजपूत सभा के अध्यक्ष गणपतसिंह, राजस्थान रावणा राजपूत महासभा के प्रवक्ता गजेन्द्रसिंह बीकानेर, जिला सचिव शेरसिंह चौहान, नागौर तहसील अध्यक्ष मंगेजसिंह, जगदीशसिंह, शंकरसिंह केकड़ी, तहसील अध्यक्ष हनुमानसिंह टायरी, उपाध्यक्ष सुगनसिंह चावड़ा, मकराना अध्यक्ष किशोरसिंह, भावला सरपंच श्रीमती जड़ावकंवर सहित कई वक्ताओं ने विचार व्यक्त किए। इस दौरान वक्ताओं ने जातिगत जनगणना के दौरान अपनी जाति रावणा राजपूत ही अंकित करवाने, सामाजिक कुरीतियों का निवारण कर शिक्षा को बढ़ावा देने, प्रतिभाओं को प्रोत्साहन, सामाजिक एकजुटता संबधी विचार व्यक्त किए। इससे पूर्व प्रतिनिधियों ने समाज में विखण्डन करने वाली ताकतों, पद व व्यक्तिगत लालसा के लिए संगठन में बिखराव करने वालों को करारा जबाब देने का संकल्प लिया गया। कार्यक्रम का संचालन भंवरसिंह चावड़ा ने किया।
Monday, December 5, 2011
ग्राम सांडिला में श्रीमती मेघवाल का स्वागत
१८ को रावणा राजपूत समाज का जिलास्तरीय सम्मेलन
प्रांतीय प्रश्न मंच प्रतियोगिता संपन्न
एक शाम गौ माता के नाम आज, विराट भंजन संध्या
नवनिर्मित राजीव गांधी सेवा केन्द्र का लोकार्पण
अध्यापिका मंच की बैठक आयोजित
प्रश्नमंच प्रतियोगिता संपन्न
Monday, November 28, 2011
जन चेतना यात्रा का भव्य स्वागत
सामान्य ज्ञान प्रतियोगिता आयोजित
Wednesday, November 16, 2011
मेघवाल ने राजनैतिक लोहा मनवाया
लीलण यात्रा जायल पहुंची
चार दिवसीय प्रशिक्षण शिविर संपन्न
विचार गोष्ठि का आयोजन
प्रशिक्षण शिविर आयोजित
Tuesday, November 15, 2011
शेखावाटी स्कूल में कॅरियर डे पूर्व प्रशिक्षण शिविर
आग की लपटे दो किलोमीटर तक फैली
करंट लगने से महिला झुलसी
बाल दिवस मनाया
Sunday, November 13, 2011
रावणा राजपूत समाज की बैठक आयोजित
Thursday, November 10, 2011
गांरटी अधिनियम के लिए कार्याशाला
भाजपा जायल मंडल की बैठक
विभिन्न प्रतियोगिताओं का आयोजन
कार्यकारिणी में फेरबदल
प्रशिक्षण शिविर संपन्न
Tuesday, November 8, 2011
आमजन की रक्षा के लिए सरकार तत्पर
सामान्य ज्ञान प्रतियोगिता आयोजित
रेसला के बैनर तले रैल 11 को
पांच दिवसीय शिविर आयोजित
करणी सेवा संस्थान की बैठक 10 नवम्बर को
चुनाव संपन्न
पंचायत समिति की बैठक 11 को
दो-दिवसीय किसान सम्मेलन संपन्न
Monday, October 31, 2011
पुतला जला कर रोष प्रकट किया
चौधरी की जगह-जगह स्वागत
हर तरफ रही पटाखों की गूंज
संत रामदासजी की पुण्य तिथि मनाई
अमन इँसाफ पार्टी की बैठक खिंयाला में आयोजित
वीर तेजा क्लब ने जीता चैलेंजर कप
Tuesday, October 25, 2011
दीपावली का अर्थ है दीपों की पंक्ति
दीपावली का अर्थ है दीपों की पंक्ति। दीपावली शब्द ‘दीप’ एवं ‘आवली’ की संधिसे बना है। आवली अर्थात पंक्ति, इस प्रकार दीपावली शब्दका अर्थ है, दीपोंकी पंक्ति । भारतवर्षमें मनाए जानेवाले सभी त्यौहारों में दीपावली का सामाजिक और धार्मिक दोनों दृष्टि से अत्यधिक महत्त्व है। इसे दीपोत्सव भी कहते हैं। ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ अर्थात् ‘अंधेरे से ज्योति अर्थात प्रकाश की ओर जाइए’ यह उपनिषदोंकी आज्ञा है। इसेसिख, बौद्ध तथा जैन धर्म के लोग भी मनाते हैं।[1] माना जाता है कि दीपावली के दिन अयोध्या के राजाश्री रामचंद्र अपने चौदह वर्ष के वनवास के पश्चात लौटे थे।[2] अयोध्यावासियों का ह्रदय अपने परम प्रिय राजा के आगमन से उल्लसित था। श्री राम के स्वागत में अयोध्यावासियों ने घी के दीए जलाए । कार्तिकमास की सघन काली अमावस्या की वह रात्रि दीयों की रोशनी से जगमगा उठी। तब से आज तक भारतीय प्रति वर्ष यह प्रकाश-पर्व हर्ष व उल्लास से मनाते हैं। यह पर्व अधिकतर ग्रिगेरियन कैलन्डर के अनुसारअक्तूबर या नवंबर महीने में पड़ता है। दीपावली दीपों का त्योहार है। इसे दीवाली या दीपावली भी कहते हैं। दीवाली अँधेरे से रोशनी में जाने का प्रतीक है। भारतीयों का विश्वास है कि सत्य की सदा जीत होती है झूठ का नाश होता है। दीवाली यही चरितार्थ करती है- असतो माऽ सद्गमय , तमसो माऽ ज्योतिर्गमय। दीपावली स्वच्छता व प्रकाश का पर्व है। कई सप्ताह पूर्व ही दीपावली की तैयारियाँ आरंभ हो जाती है। लोग अपने घरों, दुकानों आदि की सफाई का कार्य आरंभ कर देते हैं। घरों में मरम्मत, रंग-रोगन,सफ़ेदी आदि का कार्य होने लगता हैं। लोग दुकानों को भी साफ़ सुथरा का सजाते हैं। बाज़ारों में गलियों को भी सुनहरी झंडियों से सजाया जाता है। दीपावली से पहले ही घर-मोहल्ले, बाज़ार सब साफ-सुथरे व सजे-धजे नज़र आते हैं।
दीप जलाने की प्रथा के पीछे अलग-अलग कारण या कहानियाँ हैं। राम भक्तों के अनुसार दीवाली वाले दिन अयोध्या के राजा राम लंका के अत्याचारी राजा रावण का वध करके अयोध्या लौटे थे। उनके लौटने कि खुशी मे आज भी लोग यह पर्व मनाते है। कृष्ण भक्तिधारा के लोगों का मत है कि इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने अत्याचारी राजा नरकासुर का वध किया था।[3][4][5] इस नृशंस राक्षस के वध से जनता में अपार हर्ष फैल गया और प्रसन्नता से भरे लोगों ने घी के दीए जलाए। एक पौराणिक कथा के अनुसार विंष्णु ने नरसिंह रुप धारणकर हिरण्यकश्यप का वध किया था[5] तथा इसी दिन समुद्रमंथन के पश्चात लक्ष्मी व धन्वंतरि प्रकट हुए। जैन मतावलंबियों के अनुसार चौबीसवें तीर्थंकर महावीर स्वामी का निर्वाण दिवस भी दीपावली को ही है।[5] सिक्खों के लिए भी दीवाली महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इसी दिन ही अमृतसर में १५७७ में स्वर्ण मन्दिर का शिलान्यास हुआ था।[5] और इसके अलावा १६१९ में दीवाली के दिन सिक्खों के छठे गुरु हरगोबिन्द सिंह जी को जेल से रिहा किया गया था। नेपालियों के लिए यह त्योहार इसलिए महान है क्योंकि इस दिन से नेपाल संवत में नया वर्ष शुरू होता है।
पंजाब में जन्मे स्वामी रामतीर्थ का जन्म व महाप्रयाण दोनों दीपावली के दिन ही हुआ। इन्होंने दीपावली के दिन गंगातट पर स्नान करते समय 'ओम' कहते हुए समाधि ले ली। महर्षि दयानन्द ने भारतीय संस्कृति के महान जननायक बनकर दीपावली के दिन अजमेर के निकट अवसान लिया। इन्होंने आर्य समाज की स्थापना की। दीन-ए-इलाही के प्रवर्तक मुगल सम्राट अकबर के शासनकाल में दौलतखाने के सामने ४० गज ऊँचे बाँस पर एक बड़ा आकाशदीप दीपावली के दिन लटकाया जाता था। बादशाह जहाँगीर भी दीपावली धूमधाम से मनाते थे। मुगल वंश के अंतिम सम्राट बहादुर शाह जफर दीपावली को त्योहार के रूप में मनाते थे और इस अवसर पर आयोजित कार्यक्रमों में वे भाग लेते थे। शाह आलम द्वितीय के समय में समूचे शाही महल को दीपों से सजाया जाता था एवं लालकिले में आयोजित कार्यक्रमों में हिन्दू-मुसलमान दोनों भाग लेते थे।
पर्वों का समूह दीपावली
दीपावली के दिन भारत में विभिन्न स्थानों पर मेले लगते हैं।[6] दीपावली एक दिन का पर्व नहीं अपितु पर्वों का समूह है। दशहरे के पश्चात ही दीपावली की तैयारियाँ आरंभ हो जाती है। लोग नए-नए वस्त्र सिलवाते हैं। दीपावली से दो दिन पूर्व धनतेरस का त्योहार आता है। इस दिन बाज़ारों में चारों तरफ़ जनसमूह उमड़ पड़ता है। बरतनों की दुकानों पर विशेष साज-सज्जा व भीड़ दिखाई देती है। धनतेरस के दिन बरतन खरीदना शुभ माना जाता है अतैव प्रत्येक परिवार अपनी-अपनी आवश्यकता अनुसार कुछ न कुछ खरीदारी करता है। इस दिन तुलसी या घर के द्वार पर एक दीपक जलाया जाता है। इससे अगले दिन नरक चतुर्दशी या छोटी दीपावली होती है। इस दिन यम पूजा हेतु दीपक जलाए जाते हैं। अगले दिन दीपावली आती है। इस दिन घरों में सुबह से ही तरह-तरह के पकवान बनाए जाते हैं। बाज़ारों में खील-बताशे , मिठाइयाँ ,खांड़ के खिलौने, लक्ष्मी-गणेश आदि की मूर्तियाँ बिकने लगती हैं । स्थान-स्थान पर आतिशबाजी और पटाखों की दूकानें सजी होती हैं। सुबह से ही लोग रिश्तेदारों, मित्रों, सगे-संबंधियों के घर मिठाइयाँ व उपहार बाँटने लगते हैं। दीपावली की शाम लक्ष्मी और गणेश जी की पूजा की जाती है। पूजा के बाद लोग अपने-अपने घरों के बाहर दीपक व मोमबत्तियाँ जलाकर रखते हैं। चारों ओर चमकते दीपक अत्यंत सुंदर दिखाई देते हैं। रंग-बिरंगे बिजली के बल्बों से बाज़ार व गलियाँ जगमगा उठते हैं। बच्चे तरह-तरह के पटाखों व आतिशबाज़ियों का आनंद लेते हैं। रंग-बिरंगी फुलझड़ियाँ, आतिशबाज़ियाँ व अनारों के जलने का आनंद प्रत्येक आयु के लोग लेते हैं। देर रात तक कार्तिक की अँधेरी रात पूर्णिमा से भी से भी अधिक प्रकाशयुक्त दिखाई पड़ती है। दीपावली से अगले दिन गोवर्धन पर्वत अपनी अँगुली पर उठाकर इंद्र के कोप से डूबते ब्रजवासियों को बनाया था। इसी दिन लोग अपने गाय-बैलों को सजाते हैं तथा गोबर का पर्वत बनाकर पूजा करते हैं। अगले दिन भाई दूज का पर्व होता है। दीपावली के दूसरे दिन व्यापारी अपने पुराने बहीखाते बदल देते हैं। वे दूकानों पर लक्ष्मी पूजन करते हैं। उनका मानना है कि ऐसा करने से धन की देवी लक्ष्मी की उन पर विशेष अनुकंपा रहेगी। कृषक वर्ग के लिये इस पर्व का विशेष महत्त्व है। खरीफ़ की फसल पक कर तैयार हो जाने से कृषकों के खलिहान समृद्ध हो जाते हैं। कृषक समाज अपनी समृद्धि का यह पर्व उल्लासपूर्वक मनाता हैं।
परंपरा
अंधकार पर प्रकाश की विजय का यह पर्व समाज में उल्लास, भाई-चारे व प्रेम का संदेश फैलाता है। यह पर्व सामूहिक व व्यक्तिगत दोनों तरह से मनाए जाने वाला ऐसा विशिष्ट पर्व है जो धार्मिक, सांस्कृतिक व सामाजिक विशिष्टता रखता है। हर प्रांत या क्षेत्र में दीवाली मनाने के कारण एवं तरीके अलग हैं पर सभी जगह कई पीढ़ियों से यह त्योहार चला आ रहा है। लोगों में दीवाली की बहुत उमंग होती है। लोग अपने घरों का कोना-कोना साफ़ करते हैं, नये कपड़े पहनते हैं। मिठाइयों के उपहार एक दूसरे को बाँटते हैं, एक दूसरे से मिलते हैं। घर-घर में सुन्दर रंगोली बनायी जाती है, दिये जलाए जाते हैं और आतिशबाजी की जाती है। बड़े छोटे सभी इस त्योहार में भाग लेते हैं। अंधकार पर प्रकाश की विजय का यह पर्व समाज में उल्लास, भाई-चारे व प्रेम का संदेश फैलाता है। हर प्रांत या क्षेत्र में दीवाली मनाने के कारण एवं तरीके अलग हैं पर सभी जगह कई पीढ़ियों से यह त्योहार चला आ रहा है। लोगों में दीवाली की बहुत उमंग होती है।